मोहालीः फर्जी एनकाउंटर मामले में सीबीआई के विशेष न्यायाधीश राकेश गुप्ता की अदालत में आज 32 साल पहले केस को लेकर सुनवाई हुई। जहां 1992 में बलदेव सिंह उर्फ देबा और कुलवंत सिंह के फर्जी एनकाउंटर मामले में 2 पूर्व पुलिसकर्मियों को उम्र कैद की सजा सुनाई गई और 2-2 लाख रुपए जुर्माना लगाया गया है। 1992 में पंजाब पुलिस द्वारा फर्जी पुलिस मुठभेड़ में दो युवा सैनिकों बलदेव सिंह देबा और लखविंदर सिंह लक्खा उर्फ फोर्ड की हत्या के आरोप में यह सजा सुनाई गई है। दोषियों में तत्कालीन एसएचओ मजीठा पुरुषोत्तम सिंह और एएसआई गुरभिंदर सिंह शामिल हैं। इन्हें हत्या और साजिश रचने के आरोप में सजा सुनाई है।
जबकि इंस्पेक्टर चमन लाल और डीएसपी एसएस सिद्धू को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया। हालांकि, फर्जी एनकाउंटर के समय वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने दावा किया था कि उक्त दोनों कट्टर आतंकवादी थे, जिन पर इनाम घोषित किया गया था। वे हत्या, जबरन वसूली, डकैती आदि के सैकड़ों मामलों में शामिल थे। हरभजन सिंह उर्फ शिंदी यानी पंजाब की बेअंत सिंह सरकार में तत्कालीन कैबिनेट मंत्री गुरमीत सिंह के बेटे की हत्या में भी शामिल था। हालांकि, हकीकत में उनमें से एक सेना का जवान था और दूसरा 16 साल का नाबालिग था। इस मामले की जांच सीबीआई ने 1995 ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर शुरू की थी।
सीबीआई की जांच में सामने आया कि बलदेव सिंह उर्फ देबा को 6 अगस्त 1992 एसआई मोहिंदर सिंह और हरभजन सिंह, तत्कालीन एसएचओ पीएस छहरटा के नेतृत्व वाली पुलिस पार्टी ने गांव बसेरके भैनी में उसके घर से उठाया था।इसी तरह लखविंदर सिंह उर्फ लक्खा फोर्ड निवासी गांव सुल्तानविंड को भी 12 सितंबर 1992 को प्रीत नगर अमृतसर में उसके किराए के घर से कुलवंत सिंह नामक एक व्यक्ति के साथ पकड़ा गया था, जिसका नेतृत्व एसआई गुरभिंदर सिंह, तत्कालीन एसएचओ पीएस मजीठा के नेतृत्व वाली पुलिस पार्टी ने किया था, लेकिन बाद में कुलवंत सिंह को छोड़ दिया गया था।