नई दिल्ली : साल का आखिरी महीना दिसंबर एक ऐसा समय है जब हर किसी के दिल में उत्साह और उमंग भर जाती है। इस महीने के आगाज के साथ ही क्रिसमस और न्यू ईयर के जश्न की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। यह महीना न सिर्फ ठंड और सर्द हवाओं का समय है, बल्कि छुट्टियां बिताने और घूमने-फिरने का भी परफेक्ट समय है। ऐसे में क्रिसमस के मौके पर ज्यादातर लोग परिवार और दोस्तों के साथ किसी खूबसूरत जगह पर जाने का प्लान बनाते हैं। हिमाचल के कुल्लू जिले की मणिकर्ण घाटी के कसोल को मिनी इजरायल के नाम से जाना जाता है। साल भर यहां इजरायल लोगों का तांता लगा रहता है।कसोल खासतौर पर ट्रैकिंग और एडवेंचर एक्टिविटीज के लिए जाना जाता है जो ट्रैकिंग लवर्स के लिए एक रोमांचक अनुभव प्रदान करती हैं। खीरगंगा, मलाणा, और तोश जैसी नजदीकी जगहें ट्रैकिंग के लिए मशहूर हैं। इन रास्तों पर हिमालय की बर्फीली चोटियों और अल्पाइन घास के मैदानों का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। दिसंबर के दौरान, जब चारों ओर बर्फ की सफेद चादर बिछी होती है, ट्रैकिंग का अनुभव और भी यादगार बन जाता है।
हिमाचल की ये खूबसूरत वादियां इजरायल के नागरिकों की भी पसंदीदा जगह है। जब से इजरायली नागरिकों ने टूरिस्ट कै तौर पर यहां आना शुरू किया, उसके बाद इसका नाम मिनी इजरायल ही पड़ गया। यहां अक्सर सड़क, रेस्टोरेंट, होटल, ढाबों में आपको इजरायली नागरिक देखने को मिल जाएंगे। यहां के कई रेस्टोरेंट में इजरायल की हिब्रू भाषा में मेन्यू कार्ड भी देखने को मिलते हैं. इसके अलावा इजरायली लोग यहां पर होटल होमस्टे, रेस्टोरेंट भी चला रहे।नमस्कार की जगह यहां आपको ‘शलोम’ सुनाई पड़ेगा और यूं ही घूमते-फिरते कई इजरायली नागरिकों से आपका सामना भी हो जाएगा। इसीलिए इस इलाके को मिनी इजरायल कहा जाता है। यहां शाम की बयार में ‘स्टार ऑफ डेविड’ वाले इजरायली झंडे लहराते दिखते है। कसोल में ही यहूदी धर्म को मानने वाले इजरायली नागरिकों के लिए खबाद हाउस भी बनाया और इजरायल सरकार ने यहां पुजारी (हिब्रू भाषा में रब्बी) की नियुक्ति है। जहां पर इजरायल से आए यहूदी अपनी पूजा पद्धति का पालन करते हैं।
इजरायलियों ने यहां करीब तीन दशक पहले आना शुरू किया था। शुरुआत में पुराना मनाली उनका पसंदीदा ठिकाना हुआ करता था। कुल्लू की मणिकर्ण घाटी में कसोल गांव पार्वती नदी के किनारे बसा हुआ है. कसोल गांव में पहले सिर्फ एक बस स्टॉप हुआ करता था, लेकिन बाद में लोगों ने यहां बसना शुरू कर दिया। साल 1990 में इजरायल के पर्यटकों ने इस गांव में आना शुरू किया था, तब से लेकर अब तक इस गांव की संस्कृति और शैली पर इजरायल का प्रभाव स्पष्ट देखने को मिलता है। इजरायली आर्मी छोड़ने के बाद इजरायली नागरिक इस गांव में इतनी तादाद में आते हैं ऐसा लगता है मानों यह कोई इजरायल का ही गांव हो। आपको ऐसा लगेगा कि आप इजरायल ही पहुंच चुके हैं। पर्यटन सीजन के दौरान यहां पर इजरायल के लोगों की संख्या हजारों में हो जाती है। इसके अलावा मणिकर्ण घाटी के कई ग्रामीण इलाकों में यह छह माह से भी अधिक समय पार्वती घाटी में गुजारते है। इजरायल के लोग यहां पर अधिकतर समय अकेले या शांतिपूर्ण जगह पर ही रहना पसंद करते और भीड़भाड़ शोर-शराबे वाली जगह पर जाना पसंद नहीं करते हैं।