नई दिल्ली : हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक मकर संक्रांति का पर्व भी है। इस दिन भगवान सूर्य धनु से मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब मकर संक्रांति मनाई जाती है। यह दिन पूर्ण रूप से भगवान सूर्य को समर्पित है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान-पुण्य और खिचड़ी खाने और दान करने की परंपरा है। इसके अलावा इस शुभ अवसर पर तिल के लड्डू बनाए जाते हैं, जो इस इस दिन का मुख्य प्रसाद भी माना जाता है, तो आइए यहां पर जानते हैं कि आखिर इस दिन तिल के लड्डू बनाने के पीछे का कारण क्या है।
मकर संक्रांति का त्योहार भारत में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार 14 जनवरी को मनाया जाता है। पूरे देश में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है और इसे मनाने की परंपरा भी अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग देखने को मिलती है। इन्हीं परंपराओं में एक परंपरा तिल और गुड़ के लड्डू बनाकर खाने की भी है। इस दिन तिलकुट या तिल के लड्डू खाए जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस दिन तिल खाने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी छिपे हुए हैं? आइए जानते हैं कि मकर संक्रांति पर तिल क्यों खाई जाती है।
मकर संक्रांति का त्योहार सर्दी के मौसम में आता है। इसलिए इस त्योहार में तिल, गुड़ जैसी चीजों को खाने का खास महत्व है, क्योंकि ये ठंड के मौसम में हमारे शरीर के लिए काफी फायदेमंद होती हैं। आइए जानें तिल खाने के फायदों के बारे में। मकर संक्रांति पर तिल के लड्डू बनाने और खाने का विशेष महत्व है। कहते हैं कि इस दिन का तिल से गहरा संबंध है और इसी कारण से इस त्योहार को तिल संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि तिल के बीज पर भगवान यम का आशीर्वाद होता है और यही कारण है कि उन्हें ‘अमरत्व के बीज’ के रूप में जाना जाता है।
मकर संक्रांति के अवसर पर सलाह दी जाती है कि शनि या राहु के दुष्प्रभाव से बचने के लिए मंदिरों में काले तिल चढ़ाने चाहिए। साथ ही गुड़ और सफेद तिल से बने तिल के लड्डू का सेवन भी करना चाहिए। गुड़ भगवान सूर्य को अति प्रिय है और गुड़ व तिल की तासीर गर्म होती है, जो स्वास्थ्य के लिए भी बहुत ही लाभदायक है। इन्हीं कारणों से इस मौके पर तिल के लड्डू खाने, बनाने और दान करने की परंपरा चली आ रही है।