मैं न चलता तो रस्ते भी जाते खान मैं चला तभी ये नज़ारे चले
ऊना\सुशील पंडित: मैं न चलता तो रस्ते भी जाते खान,मैं चला तभी ये नज़ारे चले। मेरे आगे न था रास्ता कोई भी,मेरे पीछे मगर लोग सारे चले। यह शब्द ऊना मुख्यालय पर निजी होटल में प्रख्यात उर्दु शाइर ज़ाहिद अबरोल द्वारा लिखित ‘अम्बपाली (वैशाली की बेटी)’ उर्दु काव्य-नाटक के लोकार्पण समारोह के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में अपनी काव्य प्रस्तूति देते हुए साहित्य अकैडमी नई दिल्ली उर्दु सलाहकार समिति के संयोजक साहित्य अकैडमी पुरस्कार विजेता डा.चंद्र भान ‘खयाल’ ने कहें। कार्यक्रम के दौरान ऊना में कवियों की महफिल सजी। इसमें देश भर से आए कवियों ने नज़्म सुनाई तथा खूब वाहवाहीं लूटी।
प्रख्यात उर्दु शाइर ज़ाहिद अबरोल ने अपनी प्रस्तूती से खूब दाद बटोरी। उन्होंने कहा कि एक कलम है मेरे हाथों में कोई साज नहीं,इसमें संगीत तो भरपूर है आवाज नहीं। कवि जावेद उल्फत ने अपनी प्रस्तूति में कहा कि हरेक घर का दरीचा सज़ा है गमलों से,कई दश्त कट गए बस्तियां बनाने में। लेखक धर्मपाल साहिल ने इन लाईनों से खूब वाहवाहीं बटोरी।
उन्होंने कहा कि मेरे गिरते ही मेरे पीछे वाला सम्भल गया,मुझे लगा मेरा गिरना बेकार नहीं गया। सुभाष गुप्ता शफीक की चंद लाईनों जब तक लज़्ज़ते आज़ार नही है साहिब वो जो बीमार है बीमार नहीं है साहिब को भी खूब सराहां गया। द्विजेन्द्र द्विज की कविताा कोई खुद्दार बचा ले तो बचा ले वरना पेट सर को कभी सर नहीं रहने देता को भी सराहना मिली। नासिर युसुफज़़ई ने नेकियाँ ही करता रहे अगर आदमी देवता न हो जाए,कमल शर्मा की नज़्म इस सल्तनत को फिर से कोई नाम दीजिये,है रावणों की भीड़ कोई राम दीजिए को भी खूब दाद मिली। चमन शर्मा चमन ने फूलों की तरह कभी खिला तो कर रिश्ता भले न रख तू हँसके मिला तो कर,संगीता कुंद्रा ने जो तेरा नहीं वो मिला नहिं जो गुजऱ गया वो गुजऱ गया। यही सोच खुद को न दे सज़ा जो गुजऱ गया वो गुजऱ गया।
जितेन्द्र परवाज़ ने नजर का चश्मा उतर गया है चमक उठी है हमारी आंखें निगाह कुछ और बढ़ गई है जब से देखी तुम्हारी आंखें, इमरान अज़ीम ने उसने पूछा है कि क्या हाल-चाल है मैंने कहा है ठीक है तेरा ख्याल है उसके बगैर दिल मेरा वीरान हो गया क्या बचा है इसमें हिजरो विसाल है मेरा प्रस्तूति दी। शम्स तबरेज़ी ने मंच का संचालन करते हुए कहा कि कि मैं ना पूछा हाल उसका और मुझे मैं सोच रहा हूं की लूट रहा मैं कैसे इस राह में जबकि कोई अनजान ना पाया मैं सोच रहा हूं मैं कैसे इस राह में लुटा मैं।
ज़ाहिद अबरोल दिल की कश्ती लिए इलाम की पतवार लिए एक दमन में हजारों ही गलो हर लिए मैं किताबों के दियाबा में खड़ा हूं बाबा एक रही हूं सारी रात में खड़ा हूं बाबा एक रही हूं सरे राह पड़ा हूं बाबा एक कलम है मेरे हाथों में कोई साज नहीं एक कलम है मेरे हाथों में कोई साज नहीं इसमें संगीत तो भरपूर है आवाज नहीं पर लाखों हम पर मगर एक भी दम साज नहीं मैं वह आंसू हूं कि जिसकी कोई परवाज नहीं बाजी की जिन आंखों से बह हूं बाबा उन्हें आंखों का पता ढूंढ रहा है बाबा अपनी आंखों का पता ढूंढ रहा हूं बाबा और जानता हूं मेरी राहों में कोई मिल नहीं दस्त है खूब है सहारा है कोई झील नहीं झील नहीं वह बहुत खुशी की कोई कंदील नहीं चांद चांद मोहम्मद से इशारे तो है तफसील नहीं दर्द ही दर्द खुशी की कोई कंदील नहीं सॉन्ग मुगम से इशारे तो है तफसील नहीं इन इशारों की बदौलत ही सुखम जिंदा है और शाम में साथ जो जिंदा है तो जिंदा है तो फल जिंदा है जिंदा है तो फल जिंदा है और देखिएगा कि हुसैन के धर्म बहुत इश्क के इनाम बहुत हुसैन के धर्म बहुत इश्क के इनाम बहुत जीत के शौक बहुत रह के फरमान बहुत गम की तहरीर बहुत दर्द के उनवान बहुत यूं ही जीना था यूं ही जीना था तो जीने के थे सामान बहुत कुछ तो कुछ तो छुपता ही था इस सच में संबंध में बाबा कोई तो बात थी आया हूं। ऊना के कवि कुलदीप शर्मा ने अपनी कविता की चंद लाईनों एक चुटकी भर नमक लिया और खुले ज़ख्म में डाल दिया। अच्छा हुआ कि यार पुराना अपना कजऱ् उतार गया से खूब दाद बटोरी।
अज़ीज़ परिहार ने पहले आईना उसने रख दिया मुझमे ओर फिर शख्स वो खुद आ बसा मुझमे तथा वरिष्ठ कवि कृष्ण कुमार तूर ने कुछ ताअल्लुक़ की रोशनी कम है,कुछ मेरी आँख भी खुली कम है। ऐसी दुनिया का क्या करे जिसमे गम हैं ज्यादा खुशी कम है। ये है तारीफ मेरे दुश्मन की वो बहुत कुछ है आदमी कम है की प्रस्तूति देकर महफिल को चार चांद लगा दिए। अशोक कालिया ने भी अपनी नज़्म पड़ी।