कोरोना वायरस (Corona Virus) की चपेट में जहां विश्व के अधिकतर देश आ चुके हैं और विश्व में अब तक हजारों लोग मौत के मुंह में जा चुके हैं, वहीं भारत भी इससे अछूता नहीं है। यहां भी दिन-प्रतिदिन कोरोना वायरस ( (Corona Virus) का कहर बढ़ता ही जा रहा है। आए दिन कोरोना पीड़ित लोगों की संख्या बढ़ना सरकार और जनता की परेशानियां बढ़ा रहा है। हालांकि सरकार इस पर रोकथाम की बहुत कोशिश करती नजर आ रही है, मगर हकीकत कुछ और ही है। असल में देश में कोरोना वायरस का डर पूरी तरह फैल चुका है।
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एक तरफ जहां जनता इससे हाहाकार कर रही है, वहीं मेडिकल वाले इस मौके पर चांदी कूट रहे हैं। वे कई-कई गुणा दामों पर मास्क, सेनीटाइजर बेच रहे हैं। इससे आम जनता पर भारी मार पड़ रही है। एक तो लोगों के काम-धंधे बंद हो रहे हैं। ऊपर से इस महामारी में जरूरत की चीजें नहीं मिल रही हैं, जो बेच भी रहे हैं, वे मनमाने दाम वसूल कर रहे हैं, जिसे किसी भी स्थिति में न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता। मेडिकल वालों की दुकानों पर की जा रही यह सरेआम लूट आम लोगों को मजबूरन झेलनी पड़ रही है।
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दुख तो इस बात का है कि सरकारी अधिकारियों ने इस मामले पर अपनी आंखें मूंद रखी हैं या शायद जानबूझ कर कोई कार्यवाही करने से बच रहे हैं। सरकारी अधिकारी बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं कि कोई अगर महंगे दामों पर मास्क या सैनीटाइजर बेचता है, तो हम उस पर कार्यवाही करेंगे। सरकार के अधिकारियों व कर्मचारियों में से किसी को भी इन मेडिकल वालों की मनमर्जी दिखाई नहीं दे रही। तीस रुपये वाला मास्क 70 रुपये में, 70 रुपये वाला सैनीटाइजर 350 रुपये में बिक रहा है।
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सरकारी अधिकारी लोगों को भीड़ का हिस्सा न बनने की सलाह तो देते हैं, मगर अभी तक लोगों को मास्क और सैनीटाइजर तक उपलब्ध नहीं करवाए जा रहे हैं। अगर हम कोरोना से हुए नुकसान की बात करें तो हमें पता चलता है कि कोरोना पीड़ित पांच लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों संदिग्ध मामले सामने आ चुके हैं। यह हालत दिल्ली, हरियाणा व हिमाचल आदि सभी मुख्य राज्यों में है। हर जगह सिर्फ नुकसान आम जनता को ही उठाना पड़ रहा है। सरकारी प्रयास पूरी तरह से आमजन को राहत नहीं पहुंचा पाए हैं। अब सवाल यह उठता है कि जब कोरोना का रोना सभी रो रहे हैं तो क्या मेडिकल वालों की लूट को सरकारी अधिकारियों की मर्जी समझा जाए? क्या आम जनता को उनके हाल पर ही छोड़ा जा सकता है? सरकारी अधिकारी क्या इस बारे में जागेंगे?
-अग्रवाल