फिरोजपुर: सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा अकसर घोटाले और धोखाधड़ी के मामले सामने आते ही रहते हैं लेकिन फिरोजपुर में ग्रामीण विकास एवं पंचायत विभाग के अधिकारियों का जो मामला सामने आया है उसने फर्जीवाड़े की सारी हदे पार कर दी है। जिले के ग्रामीण इलाके में अधिकारियों ने फर्जी गांव बनाकर सरकारी संपत्ति को चपत लगा दी। इस दौरान उन्होंने मनरेगा के फर्जी जॉब कार्ड तैयार कर और फर्जी स्कूल दिखाकर सरकार को करीब 43 लाख रुपए का चूना लगाया, जबकि वह गांव कहीं अस्तित्व में ही नहीं है।
जानकारी मुताबिक फिरोजपुर के सीमावर्ती गांव गट्टी राजो के में ग्रामीण विकास व पंचायत विभाग के अधिकारियों ने एक फर्जी गांव बना दिया है। मामला तब प्रकाश में आया जब एक पूर्व जिला परिषद सदस्य गुरदेव सिंह ने सूचना के अधिकार के तहत इसकी जानकारी मांगी, लेकिन विभाग द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी ने सभी को हैरान कर दिया। न्यू गट्टी राजो के नाम से कोई गांव अस्तित्व में नहीं है। 2013 में गट्टी राजो के गांव से अलग पंचायत बनाई गई, जिसका नाम न्यू गट्टी राजो के रखा गया।
इसी नाम का फायदा उठाकर अधिकारियों ने न्यू नाम से नया गांव बना दिया। इसके साथ ही न्यू गट्टी राजो ने एक पोर्टल बनाकर मनरेगा के सरकारी पोर्टल पर अपलोड कर दिया और उसके नाम पर लाखों रुपए फंड के रूप में प्राप्त करने लगा। जब शिकायतकर्ता ने इसकी शिकायत उच्च अधिकारियों से की तो पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी। यह मामला साल 2018-19 का है। इसके तहत न्यू गट्टी राजोके नाम से फर्जी गांव दिखाकर पहले 140 मजदूरों को मनरेगा जॉब कार्ड बनाए गए और फिर उनके विभिन्न कार्य करवाने के नाम पर 43 लाख रुपये का भुगतान किया गया। जब मामले की जांच की गई तो पता चला कि न्यू गट्टी राजो के नाम से कोई गांव अस्तित्व में है ही नहीं और गट्टी राजो के आगे न्यू लगाकर भ्रष्ट अधिकारियों ने फर्जीवाडा़ किया है और विभाग के साथ धोखाधड़ी कर उसी नाम से फर्जी गांव बनाकर लाखों रुपए हड़प लिए हैं।
घोटाले का राजफाश होने के बाद एडीसी विकास लखबिंदर सिंह ने राजस्व विभाग से रिपोर्ट मांगी है। पूछा है कि क्या नवीं गट्टी राजोके व न्यू गट्टी राजोके दो अलग-अलग गांव हैं। एक सप्ताह बाद भी राजस्व विभाग ने एडीसी को रिकॉर्ड नहीं सौंपा है। एडीसी (वि.) लखबिंदर सिंह रंधावा ने बताया कि वे मामले की गंभीरता से जांच कर रहे हैं, लेकिन राजस्व विभाग का रिकॉर्ड न मिलने के कारण गांव की स्थिति के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। आरटीआई में घोटाले का पर्दाफाश 15 जुलाई, 2024 को ही हो गया था, लेकिन करीब 6 महीने से अधिकारी इसे छुपाते रहे। कुछ महीने पहले एडीसी (वि.) का पद संभालने वाले लखबिंदर सिंह ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए जांच शुरू की है। फर्जी गांव आरटीआई एक्टिविस्ट गुरदेव सिंह के सवालों के जवाब में सामने आया था।