नई दिल्लीः कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को ब्रज के साथ-साथ पूरे देश में गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाता है और इस बार यह शुभ तिथि 9 नवंबर दिन शनिवार यानि आज है। गोपाष्टमी के पर्व पर भगवान कृष्ण और गायों की पूजा होती है। मान्यता अनुसार, गोपाष्टमी पर गाय की पूजा उपासना करने से 33 कोटि देवी देवताओं का आशीर्वाद मिलता है और घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन से भगवान कृष्ण ने गाय को चराना शुरू कर दिया था, इससे पहले वे केवल गाय के बछड़ों को ही चराया करते थे। इसी उपलक्ष्य में मथुरा वृंदावन समेत कई जगह इस पर्व को मनाया जाता है।
ज्योतिषों ने बताया कि अष्टमी तिथि शुक्रवार रात 11 बजकर 56 से शनिवार रात 10 बजकर 45 बजे तक रहेगी। ऐसे में उदया तिथि के लिहाज से शनिवार को गोपाष्टमी मनाई जा रही है। गोपाष्टमी का पूजन अभिजीत मुहूर्त में किया जाता है और आज यह मुहूर्त सुबह 11 बजकर 43 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 26 मिनट तक रहेगा। साथ ही गोपाष्टमी पर सर्वार्थ सिद्धि योग, शश राजयोग समेत कई शुभ योग भी बन रहे हैं।
मान्यता है कि गाय माता की सेवा मात्र से हर मनोकामना पूरी होती है और मृत्यु के बाद गोलोक में स्थान भी मिलता है। गोपाष्टमी गायों की पूजा को समर्पित और उनके प्रति कृतज्ञता और सम्मान प्रदर्शित करने का त्योहार है। गीता में भगवान कृष्ण ने स्वयं कहा है कि ‘गवां मध्ये वसाम्यहम्’ अर्थात् मैं गायों के बीच में ही रहता हूं। जिन बहनों ने भाई दूज पर भाइयों को तिलक नहीं लगा पाई हैं, वो इस दिन उन्हें तिलक लगा सकती हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान कृष्ण 6 वर्ष के थे, तब उन्होंने माता यशोदा से कहा कि मां मैं अब बड़ा हो गया हूं इसलिए अब मैं बछड़ों के साथ गाय को भी चराने जाउंगा। तब मैया यशोदा ने कहा कि इसके लिए तुम अपने बाबा से बात करो। बाल गोपाल तुरंत नंद बाबा के पास गए और गाय चराने को कहा। लेकिन नंद बाबा ने मना कर दिया कि तुम अभी काफी छोटे हो, अभी केवल बछड़ों को ही चराओ। लेकिन बाल गोपाल अड़े रहे, तब नंद बाबा ने कहा कि जाओ पंडितजी को बुला लाओ। बाल गोपाल भागे भागे पंडितजी को बुला लाए।
पंडितजी ने पंचांग देखा और उंगलियों पर गणना करने लगे। काफी देर तक जब पंडितजी ने कुछ नहीं कहा तब नंद बाबा बोले आखिर हुआ क्या है.. पंडितजी आप काफी देर से कुछ बोल नहीं रहे हैं। पंडितजी बोले गायों को चराने का मुहूर्त आज ही बन रहा है, इसके बाद पूरे साल तक कोई मुहूर्त नहीं है। पंडितजी के बात सुनकर बाल गोपाल तुरंत गायों को चराने के लिए निकल पड़े। बाल गोपाल ने जिस दिन से गायों को चराना शुरू कर दिया था, उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि थे इसलिए पूरे ब्रज में इस दिन गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाता है और गौ वंश की पूजा की जाती है।
गोपाष्टमी को लेकर एक अन्य कथा यह भी मिलती है कि कार्तिक मास की प्रतिपदा तिथि से लेकर सप्तमी तिथि पर भगवान कृष्ण ने गौ, बछड़े और अन्य जानवर समेत पूरे ब्रजवासियों की रक्षा के लिए उंगली पर गोवर्धन पर्वत धारण कर लिया था। फिर अष्टमी तिथि के दिन देवराज इंद्र का अहंकार भंग हुआ है और वे भगवान कृष्ण की शरण में आकर क्षमा याचना करने लग गए थे। तब कामधेनु गाय ने भगवान कृष्ण का अभिषेक किया था। तभी से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा।
गोपाष्टमी के दिन गाय व गौवंश को स्नान करवाया जाता है और फिर आरती की जाती है। आरती करने के बाद हाथ जोड़कर अभिवादन किया जाता है। अगर घर में गाय नहीं है तो गोपाष्टमी के दिन गाय को घर के मुख्य द्वार पर बुलाकर उनको स्नान व सेवा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन गाय के साथ भगवान कृष्ण की पूजा करने का भी विधान है।