चंडीगढ़, 13 नवंबर 2024: Punjab University Elections, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने पंजाब विश्वविद्यालय (पं. विवि) चंडीगढ़ में सीनेट चुनावों के त्वरित आयोजन के लिए भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ से हस्तक्षेप की अपील की है। एक औपचारिक पत्र के जरिए, मान ने बताया कि पं. विवि की सीनेट का कार्यकाल 31 अक्टूबर 2024 को समाप्त हो गया है और नए चुनावों की घोषणा में हो रही देरी ने छात्रों, शिक्षकों और पूर्व छात्रों में गहरी निराशा पैदा की है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पं. विवि का गठन 1947 के विभाजन के बाद पंजाब राज्य के शैक्षिक नुकसान की भरपाई के लिए हुआ था, और यह विश्वविद्यालय पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के तहत पंजाब के क्षेत्रों में अपनी भूमिका निभाता आ रहा है। उन्होंने बताया कि हर चार वर्षों में सीनेट के चुनाव एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत आयोजित किए जाते रहे हैं। इस बार चुनावों में देरी से विवि के विभिन्न हितधारकों में असंतोष और चिंता का माहौल है।
पंजाब विश्वविद्यालय का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
पंजाब विश्वविद्यालय का गठन विभाजन के बाद पंजाब यूनिवर्सिटी एक्ट, 1947 के तहत हुआ था ताकि पंजाब राज्य के शैक्षिक हितों की रक्षा हो सके। 1966 में पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के बाद भी विवि के संचालन और इसके चुनावों में पारदर्शिता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बनाए रखा गया। भगवंत मान ने कहा कि विवि का वर्तमान परिदृश्य राज्य के लोगों के भावनात्मक और सांस्कृतिक जुड़ाव का हिस्सा है। उन्होंने यह भी कहा कि चुनावों में देरी न केवल विवि के नियमों का उल्लंघन है बल्कि पंजाब के सांस्कृतिक हितों पर भी असर डालता है।
मान के अनुसार, सीनेट चुनावों में देरी ने विवि के छात्रों, शिक्षकों और पेशेवरों के बीच व्यापक असंतोष उत्पन्न कर दिया है। उन्होंने बताया कि चुनाव न कराकर नामांकन से इसे बदलने के सुझाव से विवि की लोकतांत्रिक आत्मा को कमजोर किया जा सकता है, जो राज्य के लिए चिंताजनक है।
उपराष्ट्रपति से हस्तक्षेप की मांग
मुख्यमंत्री ने भारत के उपराष्ट्रपति से इस मामले में हस्तक्षेप करने का आग्रह करते हुए कहा कि विवि प्रशासन और चंडीगढ़ के संघ राज्य क्षेत्र के प्रशासन को समय पर और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन करते हुए चुनाव आयोजित करने की सलाह दी जाए। मान का कहना है कि देरी का यह सिलसिला विवि के हितधारकों में निराशा फैला रहा है और लोकतंत्र की गरिमा को आघात पहुंचा रहा है।
शिक्षाविदों की प्रतिक्रिया
इस मामले पर कई शिक्षाविदों और विशेषज्ञों ने भी प्रतिक्रिया दी है। वे इस चुनाव में देरी को विवि की साख के खिलाफ बताते हुए विवि प्रशासन से शीघ्रता से चुनाव की घोषणा की मांग कर रहे हैं। उनका मानना है कि समय पर चुनाव न होने से विवि की प्रतिष्ठा और उसकी लोकतांत्रिक पहचान को आघात लग सकता है।