एयरटेल और जियो जैसी बड़ी कंपनियों को मिलेगी कड़ी टक्कर
नई दिल्लीः भारत सरकार ने सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम आवंटित करने की घोषणा की है। एयरटेल और जियो कंपनियों ने आवंटन की शर्तों और मूल्य निर्धारित करने के सरकारी पुर्नमूल्यांकन से पहले 3-5 साल की अवधि का प्रस्ताव रखा है।
यह प्रतिक्रिया संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की टिप्पणी के बाद आई, जिसमें उन्होंने सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवाओं को नीलामी के बजाय प्रशासनिक रूप से निर्धारित मूल्य पर पेश करने का संकेत दिया था। इस रुख ने भारत के दूरसंचार दिग्गजों को एलन मस्क के स्टारलिंक और अमेजॉन के कुइपर के साथ सीधी प्रतिस्पर्धा में खड़ा कर दिया। दोनों अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों ने टेरेस्ट्रियल लाइसेंस की तरह साझा स्पेक्ट्रम 20 वर्ष की अवधि के लिए आवंटित करने का आग्रह किया है।
भारत अब तक जियोस्टेशनरी अर्थ ऑर्बिट सैटेलाइट का ज्यादातर घरों के लिए सीधे प्रसारण के लिए करता रहा है। इन प्रणालियों में दो-तरफा संचार की कुछ सीमाएं हैं, क्योंकि वे पृथ्वी से 36,000 किमी दूर एक कक्षा में काम कर रहे हैं लेकिन अब, स्टारलिंक और कुइपर पृथ्वी से सिर्फ 160 से 2,000 किमी की दूरी पर कक्षा में उपग्रहों को तैनात कर रहे हैं। ये उन्हें उच्च क्षमता वाली ब्रॉडबैंड सेवाएं प्रदान करने के लिए अनुकूल बनाते हैं।
आपको बता दें, सिर्फ हाई-एंड फोन आपातकालीन संदेशों के रूप में सैटेलाइट संचार (सैटकॉम) प्रदान करते हैं। अमेरिकी चिप निर्माता क्वालकॉम ऐसे चिपसेट डिजाइन कर रहा है जिससे आम स्मार्टफोन सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सिग्नल पकड़ पाएंगे। इस सेवा की कीमतें आम सेवाओं जैसी या सस्ती हो सकती हैं।
एलन मस्क का वेंचर स्टारलिंक और अमेजन का प्रोजेक्ट कुइपर सैटकॉम स्पेक्ट्रम के प्रशासनिक आवंटन का सपोर्ट करते हैं। वहीं जियो और एयरटेल का मानना है कि सरकार द्वारा पूर्व-निर्धारित मूल्य पर सैटेलाइट ब्रॉडबैंड स्पेक्ट्रम देने से असमान खेल का मैदान बनेगा। हालांकि, संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस पर सरकार का रुख साफ करते हुए कहा है कि सैटेलाइट स्पेक्ट्रम का प्रशासनिक आवंटन होना वैश्विक रुझान के अनुरूप है।