कथा व्यास आचार्य डॉ सुमन शर्मा जी सुना रहे श्री मद देवी भागवत कथा
ऊना/सुशील पंडित: उपमंडल बंगाणा के हिमुडा कालौनी में चल रही श्री मद देवी भागवत कथा के पंचम दिवस पर कथा व्यास आचार्य डॉ सुमन शर्मा ने अमृत वर्षा करते हुए कहा कि शौनक ऋषि ने पूछा कि जिन जरत्कारु ऋषि का नाम लिया है, उनका जरत्कारु नाम क्यों पड़ा था उनके नाम का अर्थ क्या है और उनसे आस्तिक का जन्म कैसे हुआ? उग्रश्रवा जी ने कहा, ‘जरा’ शब्द का अर्थ है क्षय, ’कारु’ शब्द का अर्थ है दारुण। तात्पर्य यह कि उनका शरीर पहले बड़ा दारुण था। कथा व्यास ने कहा कि बाद में उन्होंने तपस्या कर के उसे जीर्ण-शीर्ण और क्षीण बना लिया।
इसी से उनका नाम जरत्कारु पड़ा। ये संयोग की बात है कि वासुकि नाग की बहिन भी पहले वैसी ही थी। फिर उसने भी अपने शरीर को तपस्या के द्वारा क्षीण कर लिया, इसलिए वह भी जरत्कारु कहलायी। अब आस्तिक के जन्म की कथा सुनिये। उन्होंने कहा कि जरत्कारु ऋषि बहुत दिनों तक ब्रह्मचर्य धारण कर के तपस्या में संलग्न रहे। वे विवाह करना नहीं चाहते थे। वे जप, तप और स्वाध्याय में लगे रहते तथा निर्भय होकर स्वच्छन्द रूप से पृथ्वी पर विचरण करते। उन दिनों परीक्षित का राजत्व काल था। मुनिवर जरत्कारु का नियम था कि जहाँ सायंकाल हो जाता, वहीं वे ठहर जाते।
वे पवित्र तीर्थों में जाकर स्नान करते और ऐसे कठोर नियमों का पालन करते, जिनको पालना विषय लोलुप पुरुषों के लिए प्राय: असम्भव है उन्होंने कहा कि वे केवल वायु पीकर निराहार रहते। इस प्रकार उनका शरीर सूख-सा गया। एक दिन यात्रा करते समय उन्होंने देखा कि कुछ पितर नीचे की ओर मुँह किये एक गड्ढे में लटक रहे हैं। वे एक खस का तिनका पकड़े हुए थे और वही केवल बच भी रहा था। उस तिनके की जड़ को भी धीरे-धीरे एक चूहा कुतर रहा था। पितृगण निराहार थे, दुबले और दुःखी थे।
जरत्कारु ने उनके पास जाकर पूछा, “आप लोग जिस खस के तिनके का सहारा लेकर लटक रहे हैं, उसे एक चूहा कुतरता जा रहा है। कथा व्यास ने कहा कि यह अध कटी जड़ जरत्कारु है जड़ कुतरने वाला चूहा महाबली काल है। यह एक दिन जरत्कारु को भी नष्ट कर देगा, हम लोग और भी विपत्ति में पड़ जायँगे। आप जो कुछ है वह सब जरत्कारु से कहियेगा। कृपा करके यह बतलाइये कि आप कौन हैं और हमारे बन्धु की तरह हमारे लिये क्यों शोक कर रहे हैं। कथा व्यास ने कहा कि पितरों की बात सुनकर जरत्कारु को बड़ा शोक हुआ उनका गला रूँध गया, उन्होंने विह्वल वाणी से अपने पितरों से कहा, आप लोग मेरे ही पिता और पितामह हैं।
मैं आप लोगों का अपराधी पुत्र जरत्कारु ही हूँ। आप लोग मुझ अपराधी को दण्ड दीजिये और मेरे करने योग्य काम बतलाइये।पितरों ने कहा, “बेटा यह तो बड़े सौभाग्य की बात है कि तुम संयोगवश यहाँ आ गये। भला, बतलाओ तो तुमने अब तक विवाह क्यों नहीं किया?” जरत्कारु ने कहा, “पितृगण! मेरे हृदय में यह बात निरन्तर घूमती रहती थी कि अखण्ड ब्रह्मचर्य का पालन करके उच्च लोकों को प्राप्त करूँ।
मैंने अपने मन में यह दृढ़ संकल्प कर लिया था कि मैं कभी विवाह नहीं करूँगा। परन्तु आप लोगों को उलटे लटकते देखकर मैंने अपना ब्रह्मचर्य का निश्चय पलट दिया है। कथा व्यास ने कहा कि वह ब्रह्मचारी बालक बचपन में ही बड़ा बुद्धिमान् और सात्त्विक था। जब वह गर्भ में था, तभी पिता ने उसके सम्बन्ध में अस्ति (है) पद का उच्चारण किया था; इसलिये उसका नाम आस्तिक हुआ। नागराज वासुकि के घर पर बाल्य अवस्था में बड़ी सावधानी और प्रयत्न से उसकी रक्षा की गयी। थोड़े ही दिनों में वह बालक इन्द्र के समान बढ़कर नागों को हर्षित करने लगा।
इस मौके पर युवा व्यवसाई अंकुश वर्जाता, हंसराज वर्जाता,ज्योति वर्जाता, विनोद कुमार सेंटी, आर बी राणा, माया देवी मदन गोपाल बोहरा, राजन सोनी,बिंदू सोनी, अजमेर सिंह कुटलैहडिया,रणबीर पठानीया, कुशला पठनीया, विनोद कुमार शर्मा, अंजू शर्म, बबीता कुटलैहडिया, शिव कुमार वर्जाता,सुमन वर्जाता, रक्षा सोनी,मधु बोहरा, उपप्रधान सुरेन्द्र हटली, सुशील बाबा,सुरेन्द्र राणा, राकेश शर्मा,बलदेव शास्त्री,नरेंद्र शर्मा, कमल देव शास्त्री, कुलदीप शर्मा,विवेकशील शर्मा,मदन गोपाल डॉ केशवानंद शर्मा आदि सैकंडों श्रद्धालुओं ने भाग लिया।