ऊना/सुशील पंडित: भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल डेरा बाबा रूद्रानंद धाम नारी में पूर्णाहुति के साथ पंच भीष्म महापर्व संपन्न हो गया। लाखों श्रद्धालुओं ने डेरे में अखंड धूणा पर माथा टेकने के साथ वेदांताचार्य सुग्रीवानंद महाराज जी से आशीर्वाद लिया। कई धार्मिक संस्थाओं ने डेरा स्थल पर श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए जलपान के स्टॉल लगाए थे।
हिमाचल देवी देवताओं की पवित्र भूमि है और इसमें हिमाचल प्रदेश को विशेष रूप से देवों की स्थली माना गया है। हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना के गांव नारी में विराजमान डेरा (ब्रह्मचारी गद्दी) डेरा बाबा रुद्रानंद के नाम से सुप्रसिद्ध अपनी समसामयिक, सामाजिक, अध्यात्मिक तथा रचनात्मक गतिविधियों के कारण विशेष व महत्वपूर्ण स्थान रखता है। करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र भी है। यहां पंचभीष्म मेले में श्रद्धालुओं ने आस्था और श्रद्धा की डूबकी लगाई। इसके अलावा डेरा बाबा जोगापंगा में भी ऐसा आयोजन हुआ।
डेरा बाबा रुद्रानंद देश ही नहीं बल्कि विदेश में रहने वालों की भी आस्था का केंद्र है। भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने यहां श्रमदान किया और बहुत बड़े आयोजन में सहभागिता निभाई। डेरा बाबा रुद्रानंद में पिछले करीब 170 वर्षों से अखंड धूना निरंतर प्रज्वलित है। इसमें लाखों लोग सात दिनों में माथा टेकने पहुंचते हैं।
इस आश्रम का प्रमुख देवता अग्रिदेव है, अत: आश्रम में हजारों लाखों श्रद्धालु यहां केवल अखंड अग्रि के प्रति अपनी श्रद्धा भेंट करने के लिए अखंड धूना के सम्मुख नतमस्तक होते हैं। इस अखंड धूने को 1850 में बाबा रुद्रानंद जी ने बसंत पंचमी के दिन अग्नि देव को साक्षी मान स्थापित किया था। इस धूने में हर रोज वैदिक मंत्रों से हवन डाला जाता है, यह सिलसिला शुरू से चलता आ रहा है। अखंड धूने की विभूति को लोग चमत्कारिक मानते हैं। वर्तमान में डेरा के अधिष्ठाता एवं वेदांताचार्य सुग्रीवानंद महाराज सालों से चली आ रही इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। हर साल पंचभीष्म के उपलक्ष्य में जहां कोटि गायत्री महायज्ञ होता है। जिसमें देशभर से आए विद्धान विधिवत पूजा अर्चना करते है और विद्वान् ब्राह्मण यज्ञशाला में कोटि गायत्री का जाप करते हैं।
पीपल की परिक्रमा और धूने की विभूति लगाने मात्र से उतर जाता है सांप का जहर डेरा बाबा रुद्रानंद आश्रम नारी के प्रांगण में विद्यमान पांच पीपल कोई साधारण वृक्ष नहीं हैं। यह पांचों पीपल चमत्कारिक हैं। क्योंकि इस जगह सालों पहले पांच ऋषियों ने घोर तप करने के साथ योग समाधि ली थी, जो बाद में पांच पीपलों के रूप में प्रकट हुए। यह बोध वृक्ष देव तुल्य माने जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इनके नीचे सर्प दंशित व्यक्ति का जहर अखंड धूने की विभूति लगाने से उतर जाता है। पीपलों की परिक्रमा करने से भूतप्रेत बाधा और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है। हर रोज आश्रम में आने वाले सैंकड़ों श्रद्धालु इन पीपलों की परिक्रमा करते हैं।