अमृतसरः पाकिस्तान से भारत 400 हिंदू मृतकों की अस्थियां पहुंची। मिली जानकारी के अनुसार कराची के पुराने गोलीमार इलाके के हिंदू श्मशान घाट में वर्षों से कलशों में रखीं 400 अस्थियां वाघा-अटारी सीमा के माध्यम से भारत पहुंची। ये अस्थियां करीब 8 साल से श्मशान में रखी थीं। परिजन को इन्हें गंगा में प्रवाहित करने का इंतजार था। महाकुंभ योग में भारत का वीजा मिलने के बाद रविवार (2 फरवरी) को कराची के श्री पंचमुखी हनुमान मंदिर में विशेष प्रार्थना सभा हुई। इसके बाद परिजन ने अस्थियों को अंतिम विदाई दी, ताकि मोक्ष के लिए इन्हें गंगा में विसर्जित किया जा सके।
इससे पहले, बुधवार (29 जनवरी) को बड़ी संख्या में श्रद्धालु पुराने कराची के गोलीमार श्मशान घाट पहुंचे थे, जहां अस्थि कलशों के लिए विशेष प्रार्थना की गई। जिन परिवारों को अपने प्रियजनों की अस्थियां हरिद्वार में विसर्जित करनी थीं, वे श्मशान घाट पहुंचे, क्योंकि भारत में अस्थि विसर्जन के लिए श्मशान घाट की पर्ची और मृतक का मृत्यु प्रमाणपत्र अनिवार्य था। कराची के निवासी सुरेश कुमार अपनी मां सील बाई की अस्थियों को हरिद्वार ले जाने का इंतजार कर रहे थे। उन्होंने बीते सप्ताह तब राहत की सांस ली, जब उन्हें पता चला कि भारत सरकार ने 400 हिंदू मृतकों की अस्थियों के लिए वीजा जारी कर दिया है। उनकी मां की मृत्यु 17 मार्च 2021 को हुई थी, और परिवार ने उसी समय भारत के वीजा के लिए आवेदन किया था, लेकिन मंजूरी मिलने में काफी देरी हुई।
सुरेश ने बताया कि उन्होंने महाकुंभ का इंतजार करने का फैसला किया था, जो हर 144 साल में एक बार आता है। यह 12 कुंभ मेलों के पूरे होने का प्रतीक है और इस बार यह 13 जनवरी से 26 फरवरी के बीच हो रहा है, जिससे हमारे धार्मिक और अंतिम संस्कार से जुड़े अनुष्ठान पूरे करने के लिए हमें 45 दिनों की अवधि मिल रही है। सुरेश कुमार ने कहा कि यदि वीजा नहीं मिलता तो वह सिंधु नदी में भी अस्थियों का विसर्जन कर सकते थे, लेकिन गंगा ही उनका पहला विकल्प थी। हिंदू धर्म में गंगा पवित्र नदी है, जो हिमालय से सीधे प्रवाहित होती है और मोक्ष के लिए इसकी धारा शुद्ध मानी जाती है।
कराची में श्री पंचमुखी हनुमान मंदिर समिति के अध्यक्ष श्रीराम नाथ मिश्रा महाराज को भारतीय वीजा मिला और मृतकों की अस्थियां साथ ले जाने की अनुमति मिल गई। उनके प्रयासों से ही पिछले 8 वर्षों से श्मशान घाट में रखीं अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने का रास्ता साफ हुआ। वह पहले भी अस्थियां विसर्जित करने भारत आ चुके हैं। श्रीराम नाथ मिश्रा ने बताया है कि इससे पहले 2011 में 135 और 2016 में 160 अस्थि कलश हरिद्वार पहुंचाए थे। इस बार वह 400 अस्थियां लेकर भारत आए हैं। लंबी यात्रा को ध्यान में रखते हुए मिट्टी के पारंपरिक कलशों की जगह सफेद प्लास्टिक के जार का उपयोग किया गया, जिनमें लाल रंग के ढक्कन लगाए गए थे, ताकि सफर के दौरान कोई नुकसान न पहुंचे।
रविवार को श्री पंचमुखी हनुमान मंदिर में अंतिम प्रार्थना के बाद अस्थि कलश यात्रा निकाली गई। यात्रा कैंटोनमेंट रेलवे स्टेशन पहुंची। यहां से अस्थियों को ट्रेन के माध्यम से लाहौर और फिर वाघा बॉर्डर लाया गया। यहां से अब वह अस्थियों के साथ हरिद्वार रवाना हो गए हैं। इन 400 में साहिल कुमार और कोमल के परिजनों की भी अस्थियां शामिल हैं। कराची के हनुमान मंदिर में उन्होंने अंतिम प्रार्थना में हिस्सा लिया और अस्थियों को भारत भेजने की व्यवस्था की। साहिल के पिता जगदीश कुमार और कोमल की मां विमला कुमारी भाई-बहन थे, जिनकी मृत्यु 2 महीने के दौरान हुई थी।
साहिल और कोमल दोनों ने बताया है कि वह अस्थियों को भारत भेजना चाहते थे, वीजा के लिए आवेदन भी किया था, लेकिन वीजा मिला नहीं। आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी, इसलिए तब अस्थियां लेकर नहीं आ पाए। अब एक साथ सैकड़ों अस्थियां भारत लाई जा रही थीं तो हमने भी परिजन की अस्थियां उनके साथ रवाना कीं। भारत पहुंचे श्री पंचमुखी हनुमान मंदिर समिति के अध्यक्ष का कहना है कि वह खुद को धन्य और सौभाग्यशाली मानते हैं कि भगवान ने उन्हें इतनी मृत आत्माओं की शांति के लिए यह महान कार्य करने का अवसर दिया। उन्होंने कहा कि महाकुंभ मेले के समापन तक वह हरिद्वार में 2 सप्ताह तक मृतकों की आत्मा की शांति के लिए विशेष प्रार्थनाएं करेंगे और अंत में गंगा नदी में अस्थियों का विसर्जन किया जाएगा।