दशहरे पर शमी पूजा और शस्त्र पूजन की भी है परंपरा
नई दिल्लीः आज दशहरा, यानी विजयादशमी है। अश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की दसवीं तिथि को श्रीराम ने रावण को मारकर विजय हासिल की। इसलिए इसे विजयादशमी कहते हैं। द्वापर युग में अर्जुन ने जीत के लिए इसी दिन शमी के पेड़ की पूजा की थी। इस पर्व पर विक्रमादित्य ने शस्त्र पूजन किया था, इसलिए दशहरे पर शमी पूजा और शस्त्र पूजन की परंपरा है। आज वनस्पति, श्रीराम और शस्त्र पूजा के लिए कुल तीन मुहूर्त हैं। इस दिन को अबूझ मुहूर्त भी कहते हैं। यानी बिना मुहूर्त देखे ही नई शुरुआत या किसी भी तरह का शुभ काम कर सकते हैं।
विष्णु धर्मोत्तर पुराण के मुताबिक विजयादशमी पर श्रीराम ने युद्ध के लिए यात्रा शुरू की और एक साल बाद इसी दिन रावण को मारा था। इस दिन धर्म रक्षा के लिए श्रीराम ने शस्त्र पूजा भी की थी। इसके बाद रावण का पुतला बनाकर विजय मुहूर्त में स्वर्ण शलाका से उसका भेदन किया। यानी सोने की डंडी से उस पुतले को भेद कर युद्ध के लिए गए थे। ऐसा करने से लड़ाई में जीत मिलती है। माना जाता है तुलसीदास जी के समय से दशहरे पर रावण जलाने की परंपरा शुरू हुई। देवी ने राक्षसों को मारकर धर्म और देवताओं की रक्षा की थी। वहीं, राम ने भी धर्म रक्षा के लिए रावण को मारा था, इसलिए इस दिन देवी और भगवान श्रीराम के शस्त्रों की पूजा होती है। दक्षिण भारत और देश में कई जगह शिल्पकार विश्वकर्मा पूजा के समान अपने औजारों और मशीनों की पूजा भी करते हैं। शस्त्रों के साथ इस दिन वाहन पूजा भी की जाने लगी है।