Highlights:
- मुजफ्फरनगर और आगरा के कारीगर हर साल नवरात्रि से एक महीने पहले नंगल पहुंचकर पुतले बनाते हैं।
- दशहरे के अवसर पर रावण का वध करने का दृश्य रामलीला के अंतिम दिनों में प्रदर्शित किया जाता है।
- इस साल रावण के पुतले की लंबाई 45 फुट रखी गई है, जबकि मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले 30 फुट के होंगे।
पंजाब, (आनंदपुर साहिब), 11 अक्टूबर, 2024: नवरात्रि शुरू होते ही माता के नो रूपों की पूजा अर्चना शुरू हो जाती है नो नवरात्रियों के बाद दसवे दिन दशहरा मनाया जाता है। नवरात्रों के शुरू होने से पहले ही शहरों में राम लीला कमेटीयों की ओर से दशहरे की तैयारी शरू कर दी जाती जिसके लिए रावण, मेघनाथ, कभकरण, के पुतलो को बनाने वाले कारीगरोें द्वारा इनकी प्रतिमा बनाने का काम शुरू किया जाता है। नंगल और नया नंगल में अलग-अलग जगह से कारीगर पिछले 20 सालों से आ रहे हैं। नंगल में मुजफ्फरनगर से कारीगर आते हैं और नया नंगल में आगरा से कारीगर आते हैं। दशहरे से एक महीना पहले ही कारीगर अपनी टीम को लेकर नंगल पहुंच जाते हैं और इन पुतलों को बनाने में जुट जाते हैं। नंगल के साथ लगते गांव के लिए यह पूतले एक ही जगह पर बनाए जाते हैं फिर यहीं से इनको वही अलग-अलग स्थान के लिए गाड़ियों पर पहुंचा दिया जाता है।
दशहरे से पहले होती है राम लीला
दशहरे के त्योहार से कुछ दिन पहलें अलग-अलग जगहों पर श्री राम जी की लीलाओं पर आधारित धार्मिक नाटक खेला जाता है। जिसे राम जी की लीला कहते हैं। रामलीला राम जी के जन्म से शुरू होकर रावण ,मेघनाथ ,कुंभकरण की मृत्यु तक खेला जाता है। रामलीला में श्री राम जी द्वारा रावण की मृत्यु का दृश्य रामलीला के आखिरी दिनों में होता है। जिसे दशहरा या विजय दशमी के रूप में मनाया जाता है। दशहरे वाले दिन शाम के समय रावण ,मेघनाथ ,कुंभकरण के बड़े-बड़े पुतलों को राम जी द्वारा अग्निभेंट किया जाता है।
दूर-दराज से आते हैं कारीगर
वही इन रावण ,मेघनाथ ,कुंभकरण के पुतलो को बनाने का कार्य मुजफ्फरनगर और आगरा से आए कारीगर द्वारा किया जाता है। इन कारीगरों में मुस्लिम समाज के साथ संबंध रखने वाले कारिगर भी होते हैं। मुस्लिम समुदाय के होने के बवजूद भी यह कारीगर पिछले कई सालों से हिंदू धार्मिक मृदा के अनुसार ही रावण, मेघनाथ, कुंभकरण, के पुतले को बनाते हैं।दशहरे से एक महीना पहले ही अपनी पूरी टीम को साथ लेकर यह कारीगर नंगल पहुंच जाते हैं और फिर अगले ही दिन अपने काम में लग जाते हैं। इन पुतलों को बनाने के लिए बांस ,कपड़ा ,घास ,कागज और बांधने के लिए डोरी इस्तेमाल की जाती है।
20 सालों से कर रहे पुतले बनाने का काम
मुजफ्फरनगर से आए कारीगरों ने बताया कि पिछले 20 सालों से हर साल वह रामलीला के इन दिनों में पुतले बनाने नंगल आते हैं। और नंगल के साथ लगते क्षेत्र श्री कीरतपुर साहब ,नूरपुर बेदी ,श्री आनंदपुर साहब आदि क्षेत्रों के लिए यहीं पर पुतलों को तैयार किया जाता है।उन्होंने बताया कि इस बार सनातन धर्म सभा नांगल की ओर से रावण, मेघनाथ, कुंभकरण, इन पुतलो की लंबाई रावण 45 फुट, का कामेघनाथ 30 फुट का, और कुंभकरण 30 फुट रखने को कहा गया है। उन्होंने बताया कि एक पुतले को बनाने में तीन-चार दिन लग जाते हैं। और जिस पर कुल खर्चा 30 से 35000 हजार के करीब आता है। इन पुतलों को बनाने के लिए 10 से 12 लोग लगते है।
700 पुतलों बना चुके हैं कारीगर
उन्होंने बताया कि पिछले 15 सालों से अब तक सात सौ के करीब पुतले बना चुके हैं। अपने परिवार की रोजी-रोटी पेट की खातिर यह लोग मुजफ्फरनगर और आगरा से एक महीना पहले ही यहां आ जाते हैं। पुतलों को बनाने वाले कारीगरों ने कहा कि विजय दशमी के पर्वो पर जलाए जाने वाले पुतलों को बनाने का काम पंजाब, हरियाणा, दिल्ली व हिमाचल प्रदेश आदि में कड़ी मेहनत से किया जाता है। उन्होंने कहा कि अपने ही हाथों द्वारा बनाए पुतलो को अग्नि में जलता देख इनका उन्हैं दुख होता है लेकिन बुराई पर अच्छाई की जीत देखकर उन्हैं खूशी महसूस होती है।