नई दिल्ली: त्योहारों के सीज़न के चलते इस बार 29 अक्तूबर को धनतेरस मनाया गया और दीपावली 31 अक्तूबर और 1 नवंबर को मनाई जा रही है। दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा का त्योहार आता है। गोवर्धन पूजा का त्योहार प्रकृति और मानवता के बीच संबंध को बताता है। यह त्योहार दिवाली के अगले दिन मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट भी कहा जाता है।
गोवर्धन पूजा का महत्व ओर कथाएं अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग है। उत्तर भारत में खासकर मथुरा वृंदावन में ये दिन श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से जुड़ा है तो वहीं पश्चिमी भारत के राज्य गुजरात में ये गुजराती नववर्ष की शुरुआत का दिन माना जाता है। गोवर्धन पूजा के दिन मंदिरों में अन्नकूट उत्सव का भी आयोजन किया जाता है। अन्नकूट शब्द का अर्थ होता है कि अन्न के मिश्रण जिसे भगवान श्री कृष्ण को भोग के रूप में चढ़ाया जाता है।
कब होती है गोवर्धन पूजा
हिंदू तिथि के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को यह त्योहार मनाया जाता है। आमतौर पर दिवाली के अगले दिन यह त्योहार मनाया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में परेवा भी कहते हैं।
क्यों की जाती है गोवर्धन पूजा
मान्यता के मुताबिक एक बार देवराज इंद्र ने अहंकार में आकर गोकुल में अत्यधिक वर्षा की थी, इस मूसलाधार बारिश से गोकुल वासी परेशान हो गए। तब गोकुल वासीयों के लिए श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपने हाथ की छोटी उंगली पर उठा सभी गोकुल वासीयो को बारिश से बचाया था। इस तरह श्रीकृष्ण ने बाल लीलाओं के जरिए प्रकृति का हमारे जीवन के लिए महत्व को समझाया।
गोवर्धन पूजा का क्या है महत्व
हिंदू धर्म में गोवर्धन पूजा एक विशेष महत्व रखती है। इस दिन प्राकृतिक संसाधन जैसे की पहाड़, गाय के साथ ही भगवान श्री कृष्ण की पूजा होती है। माना जाता है कि ऐसा करने से हमारी आने वाली पीढ़ी प्राकृतिक संसाधनों के महत्व को समझेगी और प्रकृति से जुड़ा हुआ महसूस करेगी। इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा और परिक्रमा का भी बहुत महत्व है।