
Pitru Paksha : भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर अश्विन मास की अमावस्या तक चलने वाले पितृपक्ष के दौरान पितरों की आत्मा तृप्ति के लिए पंच बलि भोग में कौवे के भोग का बहुत महत्व माना गया है। पितृ पक्ष में पितरों का तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध किया जाता है। ऐसा करने से पितरों को मुक्ति मिलती है और प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। कहा जाता है कि पितृ पक्ष पितरों के ऋण चुकाने का समय होता है। पितृ पक्ष के दौरान पितरों की मृत्यु तिथि पर श्राद्ध पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और पूर्वजों की कृपा से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। पितृ पक्ष 2 अक्टूबर को समाप्त होगा, जिसे सर्वपितृ अमावस्या के नाम से जाना जाता है।
श्राद्ध में पितरों की आत्मा को तृप्त करने के लिए देव, गाय, कौआ और श्वान का भोग सबसे पहले दिया जाता है। इस भोग को ग्रहण कर पितर तृप्त होते हैं और कुटुम्ब के सदस्यों को स्नेह पूर्वक आशीर्वाद देकर धराधाम से उध्र्व धाम को चले जाते हैं। स्कंद पुराण के अनुसार देवता और पितर गंध और रस तत्व से भोजन ग्रहण करते हैं। इनको ग्रास न/न देने से श्रद्ध कर्म अधूरा ही माना जाता है।
कौवे को खाना खिलाने से पितरो को तृप्ति मिलती है
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कौवों को देवपुत्र भी माना गया है। कौवे को भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पहले से ही आभास हो जाता है। श्रद्ध पक्ष में कौवे को खाना खिलाने से पितरो को तृप्ति मिलती है। गरुण पुराण के अनुसार, पितृपक्ष में अगर कौआ श्रद्ध का भोजन ग्रहण कर लें तो पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और यम भी खुश होते हैं और उनका संदेश पितरों तक पहुंचाते है। प्राचीन शास्त्रों के अनुसार यम ने कौवे को वरदान दिया था कि तुम्हें दिया गया भोजन पूर्वजों की आत्मा को शांति देगा। तब से यह प्रथा चली आ रही है।