
नई दिल्लीः चाइल्ड पोर्न को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है और साथ ही यह साफ किया है कि चाइल्ड पोर्न सिर्फ दूसरों की प्रसारित करना ही अपराध नहीं है, बल्कि इसे डाउनलोड करना, उसे देखना और अपने पास रखना भी अपराध की श्रेणी में आता है।
सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि निजी तौर पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना या उसे डाउनलोड करना पॉक्सो अधिनियम के दायरे में नहीं आता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफिक सामग्री देखना और उसको रखना भी POCSO के तहत अपराध है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी को पॉक्सो एक्ट के सेक्शन 15(1) के तहत अपराध माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि भले ही किसी शख्स का मकसद ऐसे वीडियो को पब्लिश करना या फिर किसी दूसरे भेजने का न हो, फिर भी ये पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध माना जाएगा।
आपको बता दें कि मद्रास हाई कोर्ट ने चेन्नई के 28 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी और आपराधिक कार्यवाही को यह कहते हुए रद्द किया था कि निजी तौर पर चाइल्ट पोर्नोग्राफी देखना यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम के दायरे में नहीं आता है। उसने पोर्नोग्राफिक उद्देश्यों के लिए किसी बच्चे या बच्चों का इस्तेमाल नहीं किया है, इसलिए इसे अभियुक्त व्यक्ति की ओर से नैतिक पतन के रूप में ही समझा जा सकता है। इसके बाद बच्चों के अधिकार के लिए काम करने वाली कई संस्थाओं ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।
बता दें कि भारत में, पॉक्सो अधिनियम 2012 और आईटी अधिनियम 2000, अन्य कानूनों के तहत, चाइल्ड पोर्नोग्राफी के निर्माण, वितरण और कब्जे को अपराध घोषित किया गया है।