ऊना सुशील पंडित: जिला ऊना के अंतर्गत आते गांव बदोली के श्री राधा कृष्ण मंदिर में कलश यात्रा के साथ अलौकिक मंत्रोच्चारण के साथ श्रीमद् भागवत महाज्ञान गंगा का विधिवत रूप से आगाज हुआ । श्रीमदभागवत कथा का आगाज करते हुए प्रसिद्ध कथावाचक गणेश दत्त शास्त्री जी ने भागवत महापुराण कथा का श्रद्धालुओं को रसपान करवाया ।
शास्त्री जी ने प्रवचनों की अमृत बर्षा करते हुए कहा कि विनम्रता का अर्थ सबकी सुन लेना नहीं परंतु स्वयं की सुन लेना है। विनम्र मनुष्य का अर्थ ही वह मनुष्य है, जो दूसरों की कम और स्वयं की आत्मा की आवाज को ज्यादा सुनता हो। स्वयं की आवाज सुनने वाला मनुष्य कभी भी उग्र नहीं हो सकता क्योंकि उग्रता का कारण ही केवल इतना सा है, कि स्वयं की आवाज को अनसुना कर देना। उन्होने कहा कि सोचो जिस शरीर को लोग सुन्दर समझते हैं, मौत के बाद वही शरीर सुन्दर क्यों नहीं लगता, उसे घर में न रखकर जला या दबा क्यों दिया जाता है?
जिस शरीर को हम सुन्दर मानते हैं जरा उसकी चमड़ी तो उतार कर देखो तब हकीकत दिखेगी कि भीतर क्या है? भीतर तो बस रक्त, रोग, मल और कचरा भरा पड़ा है फिर यह शरीर सुन्दर कैसे हुआ। उन्होने कहा कि शरीर में कोई सुन्दरता नहीं है। सुन्दर होते हैं व्यक्ति के कर्म, उसके विचार, उसकी वाणी, उसका व्यवहार, उसके संस्कार, और उसका चरित्र, जिसके जीवन में यह सब है वही इंसान दुनिया का सबसे सुंदर शख्स है और जमाना भी उसी का दीवाना है। उन्होने कहा कि कई बार हम कठिन दौर से गुजरते हैं यही जीवन है। जो हुआ है अच्छे के लिए हुआ है, हमें नकारात्मक में भी सकारात्मकता ढूंढनी चाहिए।
हमें जीवन को भरपूर जीना है और सकारात्मकता पर ध्यान देना है। उन्होने कहा कि हमारा अत्याधिक लगाव समस्याएं पैदा करता है। वह जो अपने प्रियजनों से अत्यधिक जुड़ा हुआ है। उसे चिंता और भय का सामना करना पड़ता है। क्योंकि सभी दुखों की जड़ लगाव है। इसलिए खुश रहने कि लिए लगाव छोड़ दीजिये। जो पुत्र पैदा ही न हुआ हो अथवा पैदा होकर मृत हो अथवा मूर्ख हो। इन तीनों में पहले दो ही बेहतर हैं न की तीसरा, कारण यह है कि प्रथम दोनों तो एक बार ही दु:ख देते हैं। जबकि तीसरा हर-पल दु:खदायी होता है।
कथावाचक गणेश दत्त शास्त्री महाराज ने कहा कि भगवान ने अनेक अवतारों में जन्म लेकर इस धरती को अधर्म से धर्म के मार्ग पर चलाया था और आज उस प्रभु के द्वारा ये सारी सृष्टि रचित है जिसे इस धरती का एक एक जीव जानता है लेकिन आज के इस युग में लोग भगवान को न मानकर अपने आपको स्वंय भगवान का स्थान देने लगे हैं। जिससे इस धरती पर प्रलय आने का भी योग बन सकता है क्योंकि अगर ये मानव रूपी जीवन स्वंय ही भगवान बन जाए तो इस सारी सृष्टि का संचार कौन करेगा? उन्होने बताया कि बर्ष में एक बार इस मानव रूपी जीवन को सुप्रसिद्ध स्थान *गया जी* में जाकर अपने पूर्वजों का भगवान को साक्षी मानकर पिंडदान जरूर करना चाहिए, ताकि हमारे इस नश्वर जीवन का उद्धार हो सके।
इस दौरान उन्होने रसमय भजन गाकर सब संगत को कृष्णमय रंग में रंग दिया। पंडाल में ऐसे लग रहा था मानो भगवान श्री कृष्ण स्वंय धरती पर अवतार लेकर विराजमान हो गए है और मौजूद भक्तजन श्री राधा कृष्ण की लीलाओं में मंत्रमुग्ध हो गए।