
नई दिल्ली। सेना की दुनिया में रडार का इस्तेमाल काफी बढ़ चुका है। इसके अलावा मौसम से लेकर हाइवे पर गाड़ियों की रफ्तार का पता लगाने के लिए भी रडार का उपयोग हो रहा है। इसी लाइन पर विशेषज्ञ अब रडार की मदद से बीमारियों को भी समझने की कोशिश में हैं। जर्मनी के वैज्ञानिक मान रहे हैं कि अगले कुछ समय में वे रेडियो सेंसर के जरिए दिल की धड़कनों पर नजर रखते हुए गंभीर मरीज की मौत का पता भी पहले से ही लगा सकेंगे।

जर्मनी की टेक्निकल यूनिवर्सिटी ऑफ हैम्बर्ग में वैज्ञानिकों की टीम इस दिशा में काम कर रही है। उन्होंने मरीजों की मेडिकल मॉनिटरिंग के लिए एक ऐसा सेंसर बनाया है, जो काफी काम का लग रहा है। रडार तकनीक पर आधारित ये सिस्टम मरीज की धड़कन और उसकी सांस दोनों पर ही नजर रखता है।
इस प्रक्रिया के लिए रडार अलग तरह से काम करता है। अब तक जो क्लासिक इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम इस्तेमाल होता आ रहा है, उसमें इलेक्ट्रोड और केबल की मदद से धड़कन जांची जाती रही है। इस मशीन के केबल इलेक्ट्रोड के जरिए मरीज के शरीर से जुड़े होते हैं। दूसरी तरफ रडार तकनीक में धड़कन की जांच के लिए मरीज का सामने होना जरूरी नहीं। इससे बिना किसी केबल के रिमोट यानी दूर-दराज में बैठे मरीज की भी निगरानी की जा सकती है।
वैज्ञानिकों की टीम का नेतृत्व कर रहे प्रोफेसर अलेक्जेंडर कोएल्पिन के मुताबिक जो रडार सिस्टम बनाया गया है, उसका सेंसर इतना मजबूत है कि वो मरीज के कपड़ों, चादर और गद्दों की तह की मदद से भी दिल की धड़कन और सांस की गति का पता लगा सकता है। रडार से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स निकलती हैं, जो मरीज को नुकसान पहुंचाए बगैर शरीर के अंदरुनी हिस्सों को देख पाती हैं।
हार्ट रडार इस तरह से बनाया जा रहा है कि मरीज की मौत की आशंका की पुष्टि लगभग चार दिनों पहले ही हो जाए। इससे फायदा ये होगा कि भले ही मौत पर नियंत्रण न हो सके, लेकिन मरीज के परिवार को इसके लिए मानसिक तौर पर तैयार होने का समय मिल सकेगा।
रडार सिस्टम इस तरह से भी काम करता है कि जब हार्ट नसों के जरिए खून को पंप करता है तो शरीर में खिंचाव आता है. इस कारण ही कलाई पर हाथ रखकर नब्ज देखी जाती है। रडार का सेंसर शरीर मे होने वाले इस बेहद हल्के खिंचाव का पता लगा सकता है। ह्रदय में अगर किसी तरह का बदलाव आ रहा हो तो सेंसर उसका तुरंत पता लगा लेता है और उसे रिपोर्ट करता है। इससे फायदा ये है कि हार्ट अटैक जैसे संभावित खतरों से बचने के लिए पहले से ही इलाज शुरू हो सकता है।
ये शोध फिलहाल पायलेट प्रोजेक्ट के तौर पर चल रहा है। इस दौरान नवजात और बच्चों की देखभाल हो रही है। खासतौर पर मिर्गी का दौरा जिन्हें नियमित तौर पर आता हो, रडार की मदद से उनकी निगरानी हो रही है। बता दें कि दिल की धड़कन में अनियमितता के कारण अचानक होने वाली मौतों में 20 प्रतिशत मौत मिर्गी के दौरे के कारण होती है। मुश्किल यहां ये है कि बच्चों को आने वाले इन दौरों का इलाज हो तो पाता है लेकिन दौरे आने का पहले से पता नहीं लग पाता। इससे काफी खतरा होता है। अब इसी रडार की मदद से बच्चों की निगरानी की जा रही है।