
शिमलाः कहते हैं खूबसूरती हमेशा खतरनाक होती है, कुछ ऐसा ही कहा जा सकता है हिमाचल के बारे में। हिमाचल जितना खुबसूरत है, उतनी ही मुश्किल यहां की जिंदगी है। काफी हद तक हम इंसानों ने खुद जिंदगी को खतरे की ओर धकेला है। हिमाचल का इतिहास इस बात की गवाही दे रहा है। हिमाचल पश्चिमी हिमालय की गोद में बसा है, जो 55,673 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ। नैसर्गिक सौंदर्य से भरपुर इस पहाड़ी प्रदेश में आकाश को छूती कई चोटियां हैं, जो ग्लेशियरों से भरी हैं। हिमालय से निकलने वाली नदियां पर अपने रौद्र रूप में आती हैं तो बड़ी तबाही मचाती हैं।
प्रदेश की प्रमुख नदियों में चंद्र भागा, रावी, ब्यास और सतलुज शामिल हैं। इनमें कई छोटे-बड़े नदी-नाले मिलते हैं। 67 फीसदी से ज्यादा वन क्षेत्र है। 2011 की जनगणना के अनुसार हिमाचल की जनसंख्या 68.65 लाख है, एक अनुमान के मुताबिक, अब प्रदेश की जनसंख्या लगभग 70 लाख पहुंच गई है। प्रदेश में विकासात्मक गतिविधियों और अवैज्ञानिक तरीकों से किए गए निर्माण से लेकर प्रकृति से छेड़छाड़ की वजह जलवायु परिवर्तन तक से खतरा पैदा रहा है।
प्रदेश में प्राकृतिक और मानव निर्मित खतरों की बात करें तो इनमें मुख्य रूप से भूकंप,बाढ़,बादल फटना, हिमस्खलन, भू-स्खलन, आंधी-तूफान, ओला-वृष्टि, सूखा,बांध का टूटना, घरों और जंगलों में लगने वाली आग, सड़क दुर्घटनाएं, रासायनिक और औद्यौगिक खतरों से लेकर संक्रमण और महामारी तक कई खतरें शामिल हैं। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के मुताबिक, हिमाचल प्रदेश के इतिहास में रिक्टर स्केल पर 4 या उससे अधिक की तीव्रता के भूकंप 80 से ज्यादा बार अनुभव किए गए है। बीआईएस भूकंपीय जोनिंग मानचित्र के अनुसार हिमाचल के 5 जिलों में खतरा सबसे ज्यादा है। इनमें चंबा जिले का 53.2%, हमीरपुर का 90.9%, कंगड़ा का 98.6%, कुल्लू का 53.1% और जिले मंडी का 97.4 फीसदी क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से हाई रिस्क जोन में है।