
6 मार्च को सुनाई जाएगी सजा, 1993 का है मामला
मोहालीः पंजाब में 32 साल पुराने 2 लोगों के फर्जी एनकाउंटर से जुड़े मामले में मोहाली स्थित सीबीआई की विशेष अदालत ने 2 पूर्व पुलिस मुलाजिमों को दोषी ठहराया है। दोषियों में तरनतारन के पट्टी में तैनात तत्कालीन पुलिस अधिकारी सीता राम व एसएचओ पट्टी राज पाल शामिल हैं। मृतकों में गुरदेव सिंह व सुखवंत सिंह तरनतारन सिंह शामिल है। आरोपियों को 6 मार्च को सजा सुनाई जाएगी। जबकि 5 आरोपियों को संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया गया। मामले में 11 पुलिस अधिकारियों पर अगवा, गैन कानूनी हिरासत व हत्या का दोष लगाया गया था, सुनवाई के दौरान 4 लोगों की मौत हो गई थी।
घर से उठाया, लावारिसों की तरह किया संस्कार
30 जनवरी 1993 को गुरदेव सिंह उर्फ देबा निवासी गलीलीपुर तरनतारन को पुलिस चौकी करण तरनतारन के इंचार्ज एएसआई नौरंग सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस पार्टी ने उसके घर से उठाया था। जबकि 5 फरवरी 1993 को एक अन्य युवक सुखवंत सिंह को एएसआई दीदार सिंह के नेतृत्व वाली पुलिस टीम ने पट्टी थाना क्षेत्र के बाम्हणीवाला गांव से उसके घर से उठा लिया था।
बाद में दोनों को 6 फरवरी 1993 को थाना पट्टी के भागूपुर क्षेत्र में एक मुठभेड़ में मार दिखाया। थाना पट्टी तरनतारन में एफआईआर दर्ज की गई। वहीं, पुलिस ने दोनों मृतकों के शवों का अंतिम संस्कार लावारिस हालत में कर दिया। इसके बाद उनके परिवारों को सौंपा नहीं गया। उस समय पुलिस ने दावा किया था कि दोनों युवक हत्या, फिरौती जैसे अपराधों में मामलों में शामिल
SC के आदेश पर CBI ने जांच शुरू की
1995 सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर इस मामले की जांच की थी। शुरूआती जांच में 27 नवंबर 1996 को एक गवाह, ज्ञान सिंह का बयान दर्ज किया। बाद में, फरवरी 1997 में सीबीआई ने जम्मू में पीपी कैरों और पीएस पट्टी के एएसआई नोरंग सिंह और अन्य के खिलाफ आईपीसी की धारा 364/34 के तहत केस दर्ज किया।
साल 2000 में जांच पूरी होने के बाद, सीबीआई ने तरनतारन के 11 पुलिस अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। इन अधिकारियों में नोरंग सिंह (तत्कालीन इंचार्ज पीपी कैरों), एएसआई दीदार सिंह, कश्मीर सिंह (तत्कालीन डीएसपी, पट्टी), सीता राम (तत्कालीन एसएचओ पट्टी), दरशन सिंह, गोबिंदर सिंह (तत्कालीन एसएचओ वल्टोहा), एएसआई शमीर सिंह, एएसआई फकीर सिंह, सी. सरदूल सिंह, सी. राजपाल और सी. अमरजीत सिंह शामिल थे।
अदालत में ऐसे चली सुनवाई
साल 2001 में इन सभी आरोपियों पर आरोप तय किए गए थे, लेकिन पंजाब डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट 1983 के तहत आवश्यक मंजूरी की अपील के आधार पर उच्च अदालतों ने 2021 तक इस मामले पर रोक लगा दी थी, जिसे बाद में खारिज कर दिया गया था।
हैरानी की बात यह थी कि सीबीआई द्वारा एकत्र किए गए सभी सबूत इस केस की न्यायिक फाइल से गायब हो गए। हाईकोर्ट के संज्ञान लेने के बाद कोर्ट के आदेशों पर रिकॉर्ड को दोबारा तैयार किया गया और अंततः घटना के 30 साल बाद, 2023 में पहले सरकारी गवाह का बयान दर्ज किया गया।
सीबीआई के सरकारी वकील अनमोल नारंग ने बताया कि दोषी सीता राम की उम्र 80 साल है और उन्हें आईपीसी की धारा 302, 201 और 218 के तहत दोषी ठहराया गया है। वहीं, राजपाल की उम्र लगभग 57 साल है और उन्हें धारा 201 और 120-बी के तहत दोषी माना गया है।