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इस एक्टर की बेटी को मिला शिक्षा जगत में विश्व का प्रतिष्ठित पुरस्कार

नई दिल्ली : सफीना ने बताया कि गरीबी से लेकर पितृसत्ता तक, लड़कियों को स्कूल से बाहर रखने या उन्हें अपनी शिक्षा पूरी किए बिना स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर करने के अनगिनत कारण हैं, मुझे इसका एहसास तब हुआ जब मुझे खुद अपनी पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था। ‘एजुकेट गर्ल्स’ की संस्थापक सफीना हुसैन भारतीय गांवों में स्कूल न जाने वाली 14 लाख लड़कियों को मुख्यधारा की शिक्षा में वापस लाने के लिए 5 लाख अमेरिकी डॉलर का WISE पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गई हैं. इस सप्ताह की शुरुआत में दोहा में वर्ल्ड इनोवेशन समिट फॉर एजुकेशन शिखर सम्मेलन के 11वें संस्करण में कतर फाउंडेशन द्वारा पुरस्कार दिया गया , जोकि शिक्षा के क्षेत्र में सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक है। एजुकेट गर्ल्स’ की संस्थापक सफीना हुसैन भारतीय गांवों में स्कूल न जाने वाली 14 लाख लड़कियों को मुख्यधारा की शिक्षा में वापस लाने के लिए 5 लाख अमेरिकी डॉलर का WISE पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गई हैं। इस सप्ताह की शुरुआत में दोहा में वर्ल्ड इनोवेशन समिट फॉर एजुकेशन शिखर सम्मेलन के 11वें संस्करण में कतर फाउंडेशन द्वारा पुरस्कार दिया गया। जोकि शिक्षा के क्षेत्र में सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक है. सफीना ने बताया कि गरीबी से लेकर पितृसत्ता तक, लड़कियों को स्कूल से बाहर रखने या उन्हें अपनी शिक्षा पूरी किए बिना स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर करने के अनगिनत कारण हैं, मुझे इस विषय के महत्व का एहसास तब हुआ जब मुझे घर पर कठिन परिस्थितियों की वजह से अपनी पढ़ाई से तीन साल का ब्रेक लेने के लिए मजबूर होना पड़ा था.” सफीना की किस्मत ने तब करवट ली जब तीन साल बाद उसकी एक चाची ने उसे वापस पढ़ाई के लिए प्रेरित किया और आखिरकार उसे लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में सीट दिलाने में मदद की।

इसके बाद उन्होंने फैसला लिया कि वे खुद भी स्कूल और शिक्षा से दूर लड़कियों की मदद करेंगी और उनके जीवन में वो भूमिका (चाची की तरह) निभाएंगी. सफीना ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को दिए इंटरव्यू में कहा, “16 साल पहले, जब ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ के बारे में कुछ नहीं सुना गया था, तब मैंने स्कूल छोड़ने वाली लड़कियों को मुख्यधारा की शिक्षा में वापस लाने के लिए एक एनजीओ, ‘एजुकेट गर्ल्स’ स्थापित करने का फैसला किया था। 21वीं सदी में भी, भारत में ऐसे गांव हैं जहां बकरियों को संपत्ति माना जाता है लेकिन लड़कियों को दायित्व माना जाता है.” पारिवारिक उदासीनता, प्रेरणा की कमी और खुद लड़कियों की ओर से अनिच्छा, उनकी शिक्षा के लिए प्रमुख बाधाएं थीं जिनका सफीना को तब सामना करना पड़ा जब उन्होंने ग्रामीण राजस्थान में लड़कियों को शिक्षित करने का मिशन शुरू किया, जो अब मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश तक फैल गया है. वे कहती हैं, “ये मिशन बहुत पर्सनल था इसलिए जिस मॉडल को हमने क्रियान्वित किया उसका भी पर्सनल होना जरूरी था. बालिका वधुओं से लेकर घरेलू काम में धकेली जाने वाली युवा लड़कियों तक, जिन लड़कियों को हम स्कूल वापस लाए हैं उनकी दुखद कहानियां हैं लेकिन अब उनका भविष्य उज्ज्वल है।

हमने लड़कियों के परिवारों को समझाया कि उनकी बच्चियों को सस्ती शिक्षा प्राप्त करने का रास्ता दिखाने और नजदीकी सरकारी स्कूल में दाखिला दिलाने तक, टीमें ये सुनिश्चित करने के लिए हर काम करती हैं जिससे इन लड़कियों को स्कूल भेजा जाए.” इस मिशन के जरिए स्कूल न जाने वाली लड़कियों की अधिक संख्या वाले गांवों की पहचान करने के लिए अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल किया जा रहा है. इस जानकारी से लैस, 21,000 से अधिक जेंडर चैंपियन इन लड़कियों की पहचान करने के लिए भारत के सबसे दुर्गम गांवों में घर-घर जाते हैं. सरकार और समुदायों के साथ साझेदारी में काम करते हुए, हम उन्हें औपचारिक शिक्षा प्रणाली में फिर से जोड़ते हैं. सफीना ने कहा, “AI हमें सबसे कमजोर लड़कियों को तेजी से ढूंढने में मदद कर सकता है, और हमें बड़े पैमाने पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में मदद कर सकता है, हालांकि हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि ह्यूमन टच जमीन पर बेहद जरूरी है.” बता दें कि WISE पुरस्कार शिक्षा में उत्कृष्ट, विश्व स्तरीय योगदान के लिए किसी व्यक्ति या टीम को मान्यता देने वाला अपनी तरह का पहला पुरस्कार है, जिसकी शुरुआत साल 2011 में कतर की महारानी शेखा मोजा बिन्त नासिर ने की थी. ये पुरस्कार प्राप्त करने वाली सफीना दूसरी भारतीय हैं. उनसे पहले ‘प्रथम’ के सह-संस्थापक माधव चव्हाण को भारत में लाखों वंचित बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए 2012 में WISE पुरस्कार दिया गया था.

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