
मोहालीः पंजाब में 2027 में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर कांग्रेस इस बार कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। यही कारण है कि कांग्रेस ने पंजाब के प्रभारी को बदल दिया है। बताया जा रहा हैकि कांग्रेस ने अभी से चुनावों की तैयारियां शुरू कर दी है। दरअसल, लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 18 प्रतिशत वोट हासिल करके कांग्रेस को आंखें तरेरने पर मजबूर कर दिया है। कांग्रेस समेत अन्य पार्टियों को भी लगने लगा है कि उनका हिंदू वोट बैंक खिसककर 6 फीसदी वोट लेने वाली भाजपा के पास जा रहा है।
ऐसे में आम आदमी पार्टी ने इससे सीखते हुए पार्टी का प्रदेश प्रधान बदल कर अमन अरोड़ा के रूप में आगे कर दिया। ऐसे में सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पंजाब प्रभारी के बाद पार्टी जल्द अध्यक्ष को बदलने की तैयारी में है। बताया जा रहा है कि अध्यक्ष के पद की रेस में कई कांग्रेस के नेता दावेदारी दिखा रहे है। हालांकि कांग्रेस असमंजस में है कि वह हिंदू कार्ड खेले या जट सिख कार्ड या फिर इन सभी से हटकर किसी दिग्गज वंचित वर्ग के नेता को आगे बढ़ाया जाए। ऐसे में पार्टी के सामने पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी एक बड़ा चेहरा हैं जिसे सांसद बनाकर कांग्रेस राष्ट्रीय राजनीति में ले गई।
उन्हें पार्टी में महासचिव बनाकर किसी बड़े प्रदेश की जिम्मेदारी देने की भी योजना थी लेकिन चन्नी ने प्रदेश की राजनीति में रहने काे प्राथमिकता दी है। वह प्रदेश का अध्यक्ष बनने के लिए पूरी लाबिंग कर रहे हैं। वहीं विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा भी प्रदेश का अध्यक्ष बनना चाहते हैं और चुनाव से पूर्व जिला व ब्लाक स्तर पर अपनी टीम खड़ी करके टिकटों को बांटने पर अपना पूरा नियंत्रण रखना चाहते हैं। इसी के साथ पूर्व कांग्रेस प्रधान संतोख सिंह रंधावा के बेटे और दिग्गज नेता सुखजिंदर सिंह रंधावा भी इस दौड़ में शामिल हैं। हालांकि इस कड़ी में परगट सिंह भी छुपे रुस्तम के तौर पर सामने आ सकते हैं। अगर पार्टी हिंदू कार्ड खेलती है तो पार्टी के पास पूर्व मंत्री भारत भूषण आशू और पूर्व मंत्री विजय इन्द्र सिंगला का विकल्प मौजूद है।
जबकि कांग्रेस के मौजूदा प्रधान अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग युवा प्रधान हैं और उननी अगुवाई में पार्टी ने न केवल लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया बल्कि वह खुद भी अपने विधायक पद को त्यागकर लुधियाना जिले में जाकर लोकसभा का चुनाव लड़े और भाजपा के रवनीत बिट्टू जैसे चेहरे का मात दी। हालांकि, बाद में हुए विधानसभा के उपचुनाव में वह अपनी पत्नी की सीट भी जितवा नहीं पाए। नगर निगम के चुनाव में भी पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहा। खासतौर पर अमृतसर और फगवाड़ा में, बेशक यहां पर पार्टी इन दोनों नगर निगमों में सरकारी दबाव के कारण अपना मेयर नहीं बना पाई लेकिन आज भी उसके पास पार्षदों की गिनती सत्तारूढ़ पार्टी से ज्यादा है। ऐसे में कांग्रेस किस पर दांव खेलेगी।